विदा दोस्त!

 


एक ठंडी दिसंबर की ये आखिरी तारीखें। खूंटी पर टंगे कैलेंडर के आखिरी पेज के आखिरी दिनों से गुजरते हुए हम सब नए सूरज की इंतजार में है।
बीतते साल तुम भी खूब रहे दोस्त! /कभी धूप दी तो कभी छांव/ चलते रहे अंगारों पर हम नंगे पांव/ देखो !नदी के किनारे आ गए/ धूप की आंखों में उजाले छा गए/
जो कुछ भी हुआ ,होना था हुआ। कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादों के साथ विदा मेरे दोस्त 2019!


नए साल तुम्हारा स्वागत है-


परवीन शाकिर के शब्दों में-


खुली आंखों में सपना झांकता है /वह सोया है कि कुछ कुछ जागता है /तेरी चाहत के भीगे जंगलों में /मेरा तन मोर बन कर नाचता है /सड़क को छोड़कर चलना पड़ेगा/ कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है--


 उम्मीद कर सकते हैं तुमसे मेरे नए दोस्त!
सब के दामन में खुशियां भर कर चलना/ दर्द हो भी तो दुआ दे कर चलना/ तेरी दोस्ती के साथ साथ भी /सब खुश रहें मेरे भी दोस्त/
 स्वागत है ऐ दोस्त !
स्वागत है मेरे दोस्त!


    प्रबोध उनियाल