अब तो बाड़ ही खाने लगी खेत को
कितना चीखी कितना चिल्लाई कितना रोई होगी,
उसका पालनहार ही निकला उसका बलात्कारी,
ये सोच कर न फिर वो सोई होगी !
निकालते हैं कैंडल मार्च, शोक सभाएं हम सजाते हैं ,
जब होता है किसी बच्ची का बलात्कार
तो सड़को पर उतर आते हैं !
दरिंदे को फांसी बस एक ये ही मांग उठाते हैं,
ये सोच कर मन घबराता है,
कलेजा मुँह को निकल आता है
कल निर्भया, फिर कनठुवा, टिहरी, हैदराबाद, चेन्नई के बाद अब न जाने किसकी बारी है ।
उस बाप का क्या करिए..? "आरिफ" !
जो अपनी ही बच्ची का बलात्कारी है ।
किसी अंजान ने रौंद कर छीन लिया उसका जीवन
इस पर तो गुस्सा आता है !
जब तो बाड़ ही खाने लगे खेत को
भरोसा किस पर करे नारी ,
बाहर बैठे हैं नरभक्षी राक्षस और,
और घरवाले बने बलात्कारी,
अब कौन कैंडल मार्च निकालेगा
कौन न्याय की गुहार लगाएगा,
अब हर कोई समाज की दुहाई
देकर बस बेटी को ही समझायेगा ,
कैसे हंसेगी, कैसे खिलखिलायेगी वो
कैसे उसके हलक से नीचे निवाला जाएगा ,
जब उसको पैदा करने वाला पिता
उसके ही बलात्कार के जुर्म मे सजा पायेगा ।।
..............आरिफ खान