तेरे साथ हो जाऊं...

 


तू सुनहरी शाम है, तो मैं सवेरा हूँ!
तुझमें ढलूँ हर रोज और फिर रात हो जाऊं। 


तू जो बैठी है अकेले में, तो मैं भी ठहरा हूँ! 
तू चल पड़ी तो मैं भी तेरे साथ हो जाऊं ।


लहरों का तू है शोर, तो फिर मैं भी साहिल हूँ। 
जिस पल मिलूं तुजसे, उसी पल दूर हो जाऊं ।


तू छलकती है अकेले, तो मैं भी रोता हूँ ।
तू उफनती है तो, मैं भी चूर हो जाऊं।



तू हवा का जोर है तो, मैं भी पत्ता हूँ ।तू उड़े तो टूट कर, मैं भी संग उड़ जाऊं।


तुम मंद ठहरी है तो, मैं भी शोक में बैठा।
तू रुख अगर बदले तो, मैं भी संग मुड जाऊँ।


तू नदी की धार है तो, मैं भी पत्थर हूँ।
  टूट कर राहों में तेरी रेत हो जाऊं ।


तू झील हो जाए तो तुझ में डूब जाता हूँ ।
तू नहर बन जाए तो, मैं खेत हो जाऊं ।


तू पहाडों सी अडिग, तो मैं भी जंगल हूँ ।
  तुझमें बसूं और मैं भी तेरा रूप हो जाऊं ।     


तू गिरे तो संग तेरे मै भी गिर जाऊं।तू बर्फ से ढक जाएं तो मैं धूप हो जाऊं ।


                    ............ कवि निकेतन