माथे पर सूर्य जैसा तेज, मन की वायु जैसी वेग होगी।
ललकार होगी दुश्मनों को जब अस्थो में निश्चय तेग होगी ।
सर कटा कर मर मिटे पर, सर झुका कर ना जियेंगे।
हिन्द की खुशियों की खातिर, प्राणों की अपनी नेग होगी ।
बस अब राष्ट्र की सेवा में तुम मदहोश हो जाओ ।
नौजवा मेरे वतन के होश में आओ।
अब हिमालय से अडिग विश्वास अपना जानकार,
मर मिटेंगे पर न रुकेंगे, दिल में ऐसी ठानकर ।
बेईमान सारी नस्ल को, बर्बाद करना लक्ष्य होगा ।
फिर चल पड़ेंगे हौसले को थाम, सीना तानकर ।
बस तोड़ मुर्छा, दम भरो और होश में आओ,
नौजवा मेरे वतन के होश में आओ ।
छल कपट की आबो हवा से पार पाना है।
माटी के ऋण को, माटी में मिल कर ही चुकाना है।
जो सरजमी को लूटकर, बेखौफ बैठे हैं।
सरकलम करके उन्हें मरघट पे लाना है।
लोभ त्याग तुम इन्कलाब के आघोष में आओ।
नौजवा मेरे वतन के होश में आओ ।
नक्सली दानव को भीतर ही मिटाना तय समझ लो ,
भ्रष्टाचार के शैतान को धूं -धूं जलाना तय समझ लो।
और जो घूरते हैं उस पार से अहिले वतन की अस्मिता को ,
उनका टूटकर प्राणों की खातिर छटपटाना तय समझ लो।
बस स्वप्न छोड़ अब साथियों, सरफरोश में आ जाओ।
नौजवा मेरे वतन के होश में आ जाओ।।
............ कवि निकेतन