लिफाफे वाली लड़की
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" लिफाफे ले लो बाबूजी!"
छोटी बच्ची की इस आवाज ने मुझे अचानक चौका दिया।
बाहर हल्की बारिश है और हवा भी। मिठाई वाले की दुकान के अंदर इस बच्ची ने अपने छोटे भाई का हाथ कस कर पकड़ रखा था। लगभग दस साल की इस बच्ची के थैले में अखबारी लिफाफों की कुछ गड्डियां थी।
कुछ भीगे लिफाफों के बीच से लिफाफे की एक गड्डी निकाल कर उसने लाला से यही कहा था।
"कितने के हैं?"लाल ने पूछा।
"सात रुपए के बाबूजी!"उसने कहा--
" कितने लिफाफे हैं इस गड्डी में?"
"चौदह हैं बाबूजी!"
" नहीं चाहिए " लाला ने कड़क आवाज के साथ लिफाफे उसकी और सरका दिए-
" अच्छा चलो पांच रुपए ही दे दो बाबू जी!"लड़की ने कहा।
सिर्फ एक गड्डी लेकर लाला मेरी मिठाई तोलने लगा।
मैं देख रहा था लड़की ने पांच रुपए का सिक्का अपनी मुट्ठी में कसकर भींच लिया था।
उसने बारिश से भीगे लिफाफों को थैले में रख दिया और बाकी लिफाफे हाथ में पकड़ लिए। बारिश अब भी जारी है।
मैं नहीं समझ पाया कि उसने ऐसा क्यों किया?
"अरे! तू अभी तक यहीं खड़ी है ।जाती क्यों नहीं-? खरीद तो लिए लिफाफे--
लाला की इस कड़कती आवाज से वह सहम गई और बोली-
"बाहर बारिश बहुत है।रुक जाए तो चली जाऊंगी--!"
उसके साथ आया उसका छोटा भाई बहुत डर गया। मैं देख रहा था कि वह मायूस है और रो रहा है। वह अपनी बहन की गोद में था लेकिन उसकी सिसकियां लगातार जारी रहीं।
"बैठ जाओ बेटी तुम यहां!और सुनो यहां से तभी जाना जब बारिश रुक जाए। इस थैले में और तुम्हारे हाथ में जो लिफाफे हैं वो कुल कितने रुपए के हैं?"
" पता नहीं! लेकिन मां ने ये कहा था कि पचास रुपए में बेच आना ये सारे लिफाफे--
" लो ये पचास रुपए और सारे लिफाफे मुझे दे दो--"
लाला मेरी इस हरकत से सहम गया। दोनों बच्चों को बैठाकर वह उन्हें मिठाई खिलाने लगा। मैं पहली बार बच्चों के चेहरे में मुस्कान बो रहा था। ये लिफाफे भी मेरे साथ मेरे घर तक जाएंगे---
--- प्रबोध उनियाल