हम सबकी कहानी एक ! एक हसरत..... ज़िन्दगी से लम्हे चुरा
बटुए मे रखता रहा!
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फुरसत से खरचूंगा
बस यही सोचता रहा।
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उधड़ती रही जेब
करता रहा तुरपाई
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फिसलती रही खुशियाँ
करता रहा भरपाई।
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इक दिन फुरसत पायी
सोचा .......
खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े
वो लम्हे खर्च आऊं।
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खोला बटुआ..लम्हे न थे
जाने कहाँ रीत गए!
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मैंने तो खर्चे नही
जाने कैसे बीत गए !!
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फुरसत मिली थी सोचा
खुद से ही मिल आऊं।
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आईने में देखा जो
पहचान ही न पाऊँ।
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ध्यान से देखा बालों पे
चांदी सा चढ़ा था,
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था तो मुझ जैसा पर
जाने कौन खड़ा था।
...........अंजान की कलम से
एक हसरत....