उत्तरकाशी मंगसीर बग्वाल - 2019

बग्वाल हमारे गढ़वाल उत्तराखंड में मनायी जाने वाली दीपावली का एक त्यौहार है,जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना, प्राकृतिक रूप से मनाया जाता है।इसमें चीड़ की लकड़ी जिसे बारीक फाड़कर एक छोटी गठ्ठी बनाकर, एक बेल लम्बी मोटी बेल जो रस्सीनुमा होती है,यदि बेल नहीं मिलती फिर आगे धातु की तार से बाँधकर पिछे लम्बे रस्सी का ही प्रयोग करते हैं,इससे बाँधकर लकड़ी की गठ्ठी के दोनों सिरों पर अग्नि जलाकर इस प्रकार घुमाया जाता है जिससे अग्नि जलती रहे ओर स्वयं को बचाते हुए किसी दूसरे को भी नुकसान न पहुंचे,【मानो दो योद्धा तलवार से युद्ध कर रहे हों】' सभी एक उचित दूरी पर रहकर इसे घुमाते हैं, रात्रि के नीरव अंधेरे में जब यह अग्नि के गोले घुमते हुए दिखते हैं तो देखने वाले के मन में एक हर्ष भरा रोमाँच होता है।दर्शक इस बग्वाल को देखकर बहुत हर्षित होते हैं और तालियाँ बजाते हैं।इसे भेला कहते हैं।भेला घुमाते समय स्थानीय वाद्य यंत्र ढोल नगाड़ों को स्थानीय बाजगी ढोल नगाड़े तथा रणसिंघा बजाते हैं।



यह बग्वाल पर्व कहलाता है।पकवान के रूप में स्वाँला(मोटी पूड़ी)और पकौड़ा, तथा चावलों से बने मैदा की पापड़ी प्रमुख होते हैं।बग्वाल में भेला घुमाने के बाद जब भेले की अग्नि पूर्ण हो जाती है तब सभी समूह में गोल घेरा बनाकर ढोल की थाप पर तांदी गीत नृत्य करते हैं जो बहुत ही शानदार होता है।।अब इस बग्वाल मेले को संरक्षित करने के लिए स्थानीय सामाजिक संगठन, गणमान्य नागरिक, आम नागरिक,धार्मिक संगठन, जिला मुख्यालय में भी इसका आयोजन करते हैं।उत्तरकाशी में भी यह आयोजन विगत कई वर्षों से स्थानीय नागरिकों द्वारा किया जा  रहा है।बग्वाल पर्व हमारे उत्तराखंड की साँस्कृतिक विरासत है,



गढ़वाल की पौराणिक मंगसीर की बग्वाल की तैयारी पूरी हो चुकी है. इस बार देश के विभिन्न प्रदेशों से प्रवासी उत्तरकाशी मंगसीर की बग्वाल मनाने पहुंचेंगे. जबकि, बग्वाल में नई थीम बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी खिलाओ के साथ आने वाली पीढ़ी को देवभूमि की संस्कृति से भी रूबरू करावाया जाएगा. उत्तरकाशी के विभिन्न गांव में मनाई जाने वाली मंगसीर की बग्वाल देश में मनाई जाने वाली दीपावली के एक महीने बाद मनाई जाती है.
ये है मान्यता-
श्रीराम जब वनवास काट कर वापस लौटे थे. उसके एक महीने बाद पहाड़ों में श्री राम के अयोध्या लौटने की सूचना मिली थी. इसलिए पहाड़ में एक महीने बाद मंगसीर की बग्वाल मनाई जाती है. दूसरी मान्यता के अनुसार वीर भड़ माधो सिंह भंडारी अपना युद्ध जीतकर घर लौटे थे. जिसके बाद पहाड़ के लोगों ने अपने सेनापति की जीत में यह बग्वाल मनाई थी.