कब तक लड़ूं तुझसे ए जिन्दगी, तू थकती भी तो नही है।
कैसे-कैसे ख्वाब सजाये तुझसे ए जिंदगी तू कभी दिखती भी तो नही है।
क्यो कर देती है तू मुझे खामोस ए जिंदगी हर मोड़ पर ।
जबकि गुनगुनाती भी तू है और रुलाती भी तू है ।
क्या चाहा था और क्या पाया मैने तुझसे ए जिंदगी ।
कभी मुझसे राजी तो कभी मुझसे खफा लगती है ।
कभी मोहब्बत मेरी तो कभी बेवफा लगती है ।
तू ही बता तुझको क्या नाम दुँ कभी दुश्मन तो कभी महबूबा लगती है । ।
अब तू ही बता ए जिंदगी तू मेरी क्या लगती है । कभी तो एक गहरा समंदर तो कभी तू सिर्फ हवा लगती है। कैसे गुनगुनाऊँ तुझे ए जिंदगी
कभी गजल तो कभी कविता लगती है