पुरूष प्रधान समाज से नारी का एक पीड़ा दायक सवाल, क्या मुझे अपने तरीके से जीने का हक़ है?

यूं तो आज हम इक्कसवीं सदी मे होने और चांद व मंगलग्रह पर जाने का दम भरते हैं किंतु क्या महिलाओं के प्रति अपनी छोटी सोच और कुंठित मानसिकताओं को बदलने और नारी को अपनी बराबरी का अधिकार देने का दम है हम मे । जिंदगी के कुछ कडुवे अनुभवों को देखकर ये सवाल आता है की जब एक लड़के को उसकी जीवन संगिनी छोड़ (देहांतहो गया हो) के चली गयी हो स्वतंत्र जीने
 का अधिकार है, तो क्यों एक नारी को यह हक़ नही...?
 जब कोई पुरूष जो कि अपना जीवनसाथी उम्र के    उस दौर में खो दे जब उसे उसकी जरूरत है, तो हमारा पुरुष प्रधान समाज उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हुए सवालों की झड़ी लगा देगा जिसमे हमारी माताएं व बहने भी भरपूर सहियोगी,हितैसी व समर्थक का रोल निभाती हैं कि बेचारा कैसे करेगा, कैसे बच्चों को संभालेगा, वो शराब भी पिये तो वो गलत नहीं, उसकी मजबूरी है। वो कुछ काम भी न करे, तो वो टूट गया बेचारा, हर हाल में वो सही। और यही परिस्थिति जब एक लडक़ी के सामने आकर खड़ी होती है तो सभी का नजरिया बदल जाता है, हालात और जज्बात बदल जाते हैं, वो कुछ न करे तो कायर..बिना पति के उसके बस का था ही नही, और कुछ करने के लिये घर से बाहर कदम रखे तो,पति नही है तो आवारा हो गयी, रोये दिन भर उसकी याद में तो कहेंगे इसके दिन ऐसे ही रो के जाएंगे और हंस जाए जरा सा तो..कहेंगे,देखो इतनी जल्दी भूल गयी सब..
ये लोग हैं..कुछ तो कहेंगे ही, कुछ न कुछ तो कहेंगे ही, लोगों का काम है कहना ।


आखिर क्यों वही सभ अधिकार जो एक पति को उसकी पत्नी के देहांत होने पर मिलते हैं, पत्नी को उसके पति की मृत्यु के पश्चात नहीं दिए जाते, क्यों उसके अधिकारों, उसकी खुशियों, उसके अरमानों का गला घोंट दिया जाता है । इन्ही सवालों मे से कुछ सवाल जो कि एक पीड़ा की आवाज मे निकलते हैं कि
जब लोगों की सुननी ही है तो क्यो न अपनी खुशी से जियें ,जो मन कहे वो करके सुने, अपने सपने सच करके सुने। कम से कम ये तसल्ली तो रहेगी कि मैने अपनी जिंदगी जी है। बस खुश रहना जरूरी है और अपने फैसलों के ऊपर अडिग भरोसा होना जरूरी है। यकीन मानिये फिर तो लोग कहेंगे जरूर, लेकिन वह ही,जो आप सुनना चाहते हो। फिर भूल जाइए सब कुछ और नजर अंदाज करिए उनको जो कहते हैं, कि लोग क्या कहेंगे।


क्योंकि, कुछ तो लोग कहेंगे ही, कुछ न कुछ तो लोग कहेंगे ही, लोगों का काम है कहना...।  ..................आज के समाज को नारी के जीवन पर आईना दिखाती व्यथा...........नीलम उनियाल की कलम से🖋