जिस प्रकार पूरे भारत मे पॉलीथीन को बंद करने को लेकर हमारी सरकार ने मुहिम छेड़ी है वो एक अच्छी पहल के साथ ही एक प्रसंसनीय कदम है किन्तु इस प्रतिबंध की शुरुआत सरकार को पहले स्वयं अपने कार्यालयों और कर्मचारियों से करनी होगी क्योंकि आज भी अधिकतर सरकारी कार्यालयों मे प्लास्टिक के समान का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है सरकारी और राजनीतिक आयोजन मे भी सरकार की मुहिम की धज्जियां उड़ाते हुए आप अक्सर देख सकते हैं । जिसका जीता जागता उदाहरण देखने को मिला विगत रविवार को आयोजित लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा मे जिसमे सरकार के द्वारा जो प्रशन पत्र परीक्षार्थियों को दिया गया वो सरकार द्वारा प्रतिबंधित पॉलीथिन के अंदर बन्द था अब सवाल यह उठता है कि
यदि इन परीक्षार्थियों के समक्ष यह सवाल उस प्रशन पत्र मे आता है कि भारत वर्ष मे पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश कब से लागू हुआ था तो वो परीक्षार्थी अपने सामने सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई पॉलीथिन को देख कर क्या इसका सही जवाब दे पाएंगे और यदि दे भी दिया तो क्या वो सही और न्याय संगत होगा जिस प्रकार से पॉलीथिन प्रतिबंध करने के कुछ समय पश्चात ही हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को खुद के ही द्वारा प्रतिबंधित की गई पॉलीथिन मे कूड़ा उठाने का वीडियो वायरल हुआ था उसने भी कोई अच्छा सन्देश जनमानस तक नही पहुंचाया था । उसके पश्चात
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा सस्ती दालों को आम जनता को पॉलीथिन मे परोसा जाना और रविवार की घटना ने एक बार फिर से सरकार को आइना दिखाने का काम किया है । दूसरे को तभी जगाया जा सकता है जब खुद जाग्रत होंगे यहां तो हमारी सरकार ही इस नियम का पालन नही कर पा रही है तो फिर मानव श्रंखलाओं को बना कर पॉलीथिन से होने वाले नुकसान का सन्देश देने के इस आयोजन को सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट के सिवा कुछ और कहना गलत होगा ।
प्रतिबंधित पॉलीथिन इस्तेमाल पर सरकार पर कौन लगाएगा जुर्माना