मुझे ए मां तू वीर रस सुना दे,  तू सीता नही मुझे दुर्गा बना दे                                        

   जैसे कल की ही बात थी नई नवेली दुल्हन ने जैसे ही ग्रह प्रवेश करती है, उसके ऊपर मानो जैसे दुखों के हजारों पहाड़ टूट पड़ते हैं । अभी उसकी मेहंदी का रंग भी फीका नही पड़ा था कि तभी उसका पति नवीन जिसने अभी अभी उसके साथ जीने मरने की कसम खायी थी , वो उसे सुहाग जोड़े मे छोड़ कर किसी और की दुनिया बसाने चला जाता है , शादी के जोड़े मे रश्मों रिवाजों से बंधी लज्जा का घूंघट ओढ़े बस डरते और सिसकते हुए वो यही सोच रही थी की कैसे बताये मायके में वहाँ तो खुशियों का मेला लगा हुआ है अभी तो मेहमानों की बधाई का तांता लगा होगा मेला हो भी क्यों न खुश भी क्यों न हो आज उनकी बेटी की शादी उनकी पसंद के घराने में जो हुई थी,
कैसे बताये माँ को की जिस घराने को देखकर उसकी शादी की थी आज उसका जीवन साथी किसी और के सपनो का राजकुमार जो बन गया था और इस सबके पीछे भी दोष उसी को जो दिया जाना तय था,
 कब तक इस समाज में यही चलता रहेगा अगर लड़की अपने पसंद से घर वालों के दबाव के अपने जीवन साथी के साथ कहीं चली जाए तो दोष उसका अगर लड़का भाग गया तो भी दोष उसी का,
 आखिर कब तक समाज में एक स्त्री को यूं ही अग्नि परीक्षा देनी होगी आखिर कब तक सबके दोष के लिए उसे सूली में चढ़ाया जाएगा,
 
  और पुरुषों का क्या, उनका तो काम ही यही है, तुम तो सँभल जाती, तुम तो लड़की थी तुम्हें क्या हो गया था कि तुमने ये हरकत की कहकर सारा दोष स्त्री जाति पर ही क्यों डाल दी जाती है।
एक माँ, पत्नी,बहन ,बेटी को क्यों समाज के सामने झुकना पड़ता है,क्यों उनके पुरुषों के हर सवाल का जवाब देना पड़ता ,क्या उनका कोई अधिकार नहीं इस समाज में अपने तरीके से जीने का 
 बचपन में अगर घर में किसी को कुछ हो जाये तो भी उसी लडक़ी को अपशगुनी और पनौती कहकर पुकारते हैं।
 और अगर ससुराल में किसी को कुछ हो जाये तो इसके पैर ही खराब है पता नही कहाँ से हमारे सर मड दी इसके घर वालों ने कहकर सारा जीवन उसी स्त्री को ताने दिए जाते हैं इस पुरुष प्रधान समाज मे ।
   आज हर स्त्री का एक सवाल है,एक माँ जो नौ महीने तक बच्चे को अपने कोख में पालती है,उसके हर पल को महसूस करती है ,
 क्या उसी का दोष है। हर गलती के लिए आखिर क्यों।
  आखिर क्यों औरत में इतनी शक्ति है कि वो समाज के दिये हर दर्द को सह ले, 
 कहने को तो नारी को हमेशा से  देवी का दर्जा दिया गया है इसलिए देवियों के हाथों में भी इतने हथियार दीये गये हैं कभी सोचना इस पर क्यो देवियों को हमेशा है हथियार के साथ दिखया जाता है,
आखिर ये समाज किस ओर जा रहा है शायद आज के समाज में स्त्रियों को भी हथियार उठाने को बाध्य होना ही पड़ेगा क्योंकि कुंठित मानसिकता से भरे आज के समाज को सीता की नही दुर्गा की जरूरत है ।