यूं तो हर सख्स का मेरी जिंदगी मे आना हुआ , जितना करीब था दिल के वो उतना ही बेगाना हुआ,
जाना था मुझसे दूर तय शुदा उसका, बस हर बार मेरी ही गलती का बहाना हुआ, जब तक बना रहा मै जरूरत उसकी, तब तक दिल के गरीब और अपना सा लगता था, फिर अचानक उसका मेरी जिंदगी से जाना हुआ, मांझी सी हो गयी है जिंदगी अब तो अपनी, काम हमारा बस सब को मन्जिल तक पहुंचाना हुआ, इतना नवाजा है मेरे खुदा ने दरियादिली से मुझको लेकिन,
फिर भी न जाने क्यों दुश्मन मेरा जमाना हुआ, चाहा जिसको भी दिल की गहराइयों से मैने, उसके लिए तो बस मै पल दो पल का ठिकाना हुआ,
मै सब की उम्मीदों, सपनो और जरूरतों का हमसाया बना मगर, किसी भी मेरे अपने का मेरी जिंदगी न मुड़ कर आना हुआ ।