कोई खिड़की तो खोले..

 साथ उसका लो,जो सुख- दुःख में,सदा साथ चले।
साथ परछाईं भी चलती है, मगर रात में खो जाती है।
भीड़ में कोई आपका हो,मानिये इसेअपनी किस्मत।
जनता पिटते को देखती,और, सेल्फी बनाती है।
सुबह से शाम तलक साथ रहें, आपका ही खायेंगे।
शाम होते ही चिड़िया, अपने घोसले की तरफ जाती है।
पाँव कितने भी समेटो, तुम छोटी सी अपनी चादर में।
ये दुनिया उन्ही चादरो को, और छोटा करती जाती है।
दाग भी होते हैं गहरे और जलन भी होती है दुगनी।


और जब आग भी अपनी और अपना ही घर जलाती  है, बिगाड़ना है आसान और निभाना है  बहुत मुश्किल।


वफा की राह है, अच्छे अच्छों को निगल्  जाती है ।


बहुत दिनों की घुटन है भरी, इस अंधेरे कमरे में, कोई एक खिड़की तो खोले, जिधर से रोशनी है आती !  जिधर से रोशनी आती है ।।