दास्तानें वक़्त...

क्या गज़ब किस्मत लिखी है, क्या ज़माने हो गए,
कल तलक थे ताज़ जो, अब पायताने हो गए।

कुछ शहर की दूरियां हैं, कुछ कमी है वक़्त की,
हमसे ना मिलने के, ये अच्छे बहाने हो गए। 

ऐ शहर वालों...! तुम्हारा क्या रखा है गाँव में?
चौक, बरगद, आम, जामुन, सब पुराने हो गए। 

सरहदों से चीख निकली, वादियाँ भी रो पड़ीं,
लाल उसके आज दुश्मन के निशाने हो गए। 

लोकतांत्रिक व्यवस्था, ऐसी है मेरे देश में। 
बेवकूफों के नुमाइंदे..... सयाने हो गए।