"शालिनी, जल्दी करो, अभी तक सामान पैक नही हुआ क्या? मुझे ऑफिस के लिए देर हो जायेगी.." कार का हॉर्न बजाते हुए विकास की आवाज़ आई..
"हो गया, बस, आइये माँ जी..." शालिनी प्यार से अपनी सास का बैग उठाये हुए कार की तरफ बढ़ी।
उधर आंसुओं से डबडबाई, वो बूढ़ी आँखें, पालने में सो रही अपनी आठ महीने की पोती को निहार रही थीं, छः महीने कल ही पूरे हुए थे इस घर में आये, और अब जाने का वक़्त हो गया था, क्योंकि आज से छः महीने तक, माँ को पालने की बारी छोटे बेटे की थी।