नगर निगम की रिक्शा गाड़ी को खींचकर ले जाते उस दुर्बल से आदमी को हम सब कूड़े वाला कहकर पुकारते हैं। तो क्या वो वाकई में कूड़े वाला है, या सफाई वाला? सोचियेगा जरूर।
कई लोगों के मुँह से सुना है मैंने कि बहुत कूड़ा इकट्ठा हो रखा है, क्योंकि आज कुड़े वाला नहीं आया, अरे आज आ गयी है कुड़े वाले कि गाड़ी, सड़क कितनी गंदी है ये कुड़े वाले सही से सफाई नहीं करते......और भी बहुत कुछ।
जो आदमी सभी घरों का कूड़ा उठाता है, पूरे शहर की सफाई करता है, तो वह कूड़े वाला कैसे हो सकता है? और हम लोग क्या हैं? जो कहीं भी खाली जगह मिली तो कूड़ा फेंक देते हैं, देखते हैं कि कूड़ादान भर चुका है, लेकिन कूड़ा वहीं फेंक के आ जाते हैं।
आज सुबह जब मैं बच्चों को स्कूल छोड़के घर आ रही थी तो मैंने कूड़े से भरी एक गाड़ी सड़क किनारे देखी। लेकिन जब मैं थोड़ी देर बाद अपने ऑफिस जा रही थी, तब मैने देखा कि उस गाड़ी के चारों तरफ इतना कूड़ा इकट्ठा हो चुका था कि सारा कूड़ा सड़क तक फैल गया था। मैं थोड़ी देर रुकी, और फिर सोचा कि क्या कुड़े वाला यह कमजोर दुर्बल आदमी है? जो इस कुड़े को अब साफ करेगा, या ये सब लोग,जिन्होंने इतना कूड़ा बिखेरा? जिनको इतना भी ज्ञान और शर्म नही कि यह गाड़ी भर चुकी है, तो अब इसमें कूड़ा न फेंके, कहीं कूड़ेदान में जाके फेंके।
यह है हमारे समाज की स्थिति, जिसमें बड़े गर्व से रहते हैं हम।,और सफाई का नारा लगातें हैं....और आप लोग, जरा सोचिएगा जरूर, वह दुर्बल से दिखने वाला आदमी कुड़े वाला या सफाई वाला...? नीलम उनियाल की कलम से....🖋