लोकतंत्र की आवाज दबाने के विरोध मे देहरादून के बुद्धिजीवियों का प्रदर्शन
देहरादून :- सविंधान की धारा 19 (ए) देश की आम जनता को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने औऱ असहमत होने का अधिकार देता है। भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही शास्रार्थ करने व असहमति व्यक्त करने की आजादी देती है। भारत का सविंधान इसी प्रकार की स्वस्थ,तीखी लेकिन सम्मानपूर्वक बहसों के फलस्वरूप ही दुनिया का एक बेहतरीन लोकतांत्रिक ग्रंथ बन पाया है।लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध करना सिर्फ एक सवैंधानिक अधिकार ही नहीं है, अपितु लोकतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए एक'आवश्यक कर्तव्य' भी है।
आज देश में एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है, स्वस्थ और सभ्य बहसों का स्थान असभ्य और गाली-गलौच की संस्कृति ने ले लिया है।वैचारिक विरोध का अर्थ व्यक्तिगत विरोध मान लिया गया है और जिस कारण समाज में एक वैमनस्य की भावना पैदा हो रही है। जरा सा विरोध पर गाली-गलौज, मार पीट और मोबलिचिंग एक आम बात हो गई है।
पिछले दिनो समाज के कुछ अग्रणी व्यक्तियों जिनमे पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलाकार और अध्यापक शामिल थे, ने नरेंद्र मोदी जी को देश का सर्वोच्च नेता और प्रधानमंत्री होने के नाते एक पत्र लिखकर कुछ फैसलों पर अपनी असहमति जताई थी, लेकिन मुजफ्फरनगर-विहार की एक अदालत के आदेश पर इन बुद्धिजीवियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। दर्ज की गई प्राथमिकी सीधे तौर पर भारत गणतंन्त्रिक देश के एक नागरिक के तौर पर, इन सवैंधानिक अधिकारो का हनन तथा भारतीय संस्कृति और परंपरा का अपमान भी है।जिसके विरोधस्वरूप देहरादून का बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक संगठनों ने एक समूहिक पत्र माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को भेज कर मांग करी है कि देश के सविंधान में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए 51 बुद्धिजीवियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करके एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में एक कदम बढ़ाया जाना चाहिए।